‘2018-19 में लंदन से पढ़कर इंडिया वापस आई थी। इस positive story से बहुत कुछ सिखने को मिलेगा आने के बाद भविष्य के बारे में सोच ही रही थी कि अब करना क्या है। इसी बीच दिल्ली एक फैशन कंपनी के साथ काम करने लगी।
बचपन से यही सपना देखा करती थी की कुछ अपना करना है। अपना ब्रांड बनाना है। फैशन कंपनी के साथ काम करते हुये अपने भविष्य बारे में सोचने लगी।
मां को देखा करती थी कि वह खाली समय में शौकिया कुर्ती पर चिकनकारी कढ़ाई करती थीं। एक बार माँ ने एक दर्जी से चिकनकारी कुर्ती खरीदी। और तब मां से मैंने इसकी कीमत पूछी, तो मां ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर शौक रह गई।मां ने कहा- ढाई हजार रूपये की है |तभी मैंने सोचा कि हाथ की कढ़ाई वाले कपड़ों से ज्यादा महंगे कपड़े तो मशीन से बनाने वाले बिकते हैं।’
लखनऊ की प्रसिद चिकनकारी कढ़ाई वाली कुर्ती बेचने वाली कंपनी ‘हाउस ऑफ चिकनकारी’ की को-फाउंडर आकृति रावल ये बातें बता रही हैं। आकृति की उम्र 28 साल है और वह 100 करोड़ की वैल्यूएशन वाली इस कंपनी की ओनर हैं।
लखनऊ की चिकनकारी कुर्ती क्या ?
positive story ; आकृति बताती हैं, कि जहांगीर की पत्नी नूरजहां इस आर्ट को लखनऊ लेकर आई थीं। उसके बाद से लखनऊ के मौहले में चिकनकारी कलाकारी फलने लगी। इसमें मलमल के कपड़े पर फ्रेम और सफेद धागे की मदद से डिजाइन तैयार की जाती है। आज भी लखनऊ के गांवों में रहने वाली महिलाएं चिकनकारी कढ़ाई करती हैं।’
आकृति के साथ उनकी मां पूनम रावल का भी बहुत योगदान हैं। पूनम अब तक एक ग्रहणी थीं, लेकिन पिछले 4 साल से बिजनेस वुमन बन चुकी हैं। बातचीत में बार-बार आकृति अपनी मां को लेकर कहती हैं, ‘मैंने मां के सपने को सच किया है। इस कंपनी को बनाने के पीछे एक मकसद ये भी था।’
पूनम कहती हैं, ‘अपनी जिंदगी में बहुत संघर्ष देखे हैं। पिता की छोटी-सी कपड़े की दुकान थी। इसी से हमारा परिवार गुजरा चलता था। शुरू से कढ़ाई-बुनाई का शौक था, लेकिन यह फैशन ही रह गया।
पढ़ाई के समय ही जॉब करने लगी, क्योंकि उस वक्त घरवालों के पास ज्यादा पैसे नहीं थे। शादी के बाद भी 7 साल तक जॉब की। बच्चे हुए तो उनकी केयर से फुरसत ही नहीं मिलती थी इसलिए नौकरी छोड़ ही। इस दौरान भी घर में बहुत सारी ऐसी चीजें चलती रहीं, जिसने कई बार सपना तोड़ा है।
2020 की बात है। जब आकृति कुछ बिजनेस करने का सोच रही थी, तब उसी वक्त एक कारीगर मेरे पास आया। वह लखनऊ चिकनकारी कुर्ती बनाता था। तब तक कोरोना भी आ चुका था।
हम दोनों ने मिलकर इस बिजनेस के बारे में रिसर्च करना शुरू किया। हमने देखा कि देशभर में किसी को चिकनकारी कुर्ती पहननी है, तो लखनऊ से ही मंगवानी पड़ती है। जो महगी पड़ती थी
आकृति बताती हैं, ‘कोरोना के समय में हम दोनों मां-बेटी लखनऊ जाने लगे। वहां के कारिगारो से मिलना शुरू किया। गांव-गांव जाकर महिलाओं से मिलते और वेंडर्स से बात करते।
कोरोना की वजह से कारीगरों को न तो ग्राहक मिल रहे थे और न ही स्टॉक किए हुये प्रोडक्ट्स बिक रहे थे। यह हमारे लिए फायदे की बात थी मुझे याद है- ऐसे समय में हमने करीब एक लाख के प्रोडक्ट खरीद लिए।
अब मां हाउसवाइफ, मैं मार्केटिंग फील्ड की। हमें तो इसकी कारीगरी और फैब्रिक की भी समझ नहीं थी। हालांकि, मां के परिवार में कपड़ों का काम चलता था, तो उन्हें थोड़ी बहुत समझ थी। हम दोनों ने कारीगरों से इसके बारे में जानना शुरू किया।
दिल्ली आकर हमने एक इंस्टाग्राम पेज बनाया। प्रोडक्ट रिलेटेड डिटेल्स डालकर प्रमोट करना शुरू किया। धीरे-धीरे हमारे पास हर रोज दो-चार ऑर्डर आने लगे। जब काम बढ़ने लगा, तो हमने अपने घर में काम करने वाली मेड, उनके बच्चे, दूधवालों के बच्चों… इन लोगों को काम देना शुरू किया।’
आकृति ने बिजनेस की शुरुआत इंस्टाग्राम से ही की थी। एक साल बाद उन्होंने अपनी खुद की वेबसाइट लॉन्च की थी।
आकृति ने अपनी कंपनी की शुरुआत लगभग तीन लाख रुपए से की थी। कहती हैं, ‘जो भी हमारे पास पैसे थे सभी इसमें इन्वेस्ट कर दिया। घर के बेसमेंट से ही सारा काम हो रहा था। एक साल बाद हमने वेबसाइट लॉन्च की।
हम दोनों ही मिलकर प्रोडक्ट लाने से लेकर पैकिग तक का सारा काम करते थे। पहली बार मैं लखनऊ गई थी, तो बिजनेस के काम से ही गयी थी | positive story
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शुरू में तो कस्टमर को ब्रांड पर विश्वास भी नहीं होता है। हमने अपने चेहरे के जरिए, कारीगरों की लाइफ को दिखाकर प्रोडक्ट को प्रमोट करना शुरू किया। उसके बाद एवरेज 10 से 15 ऑर्डर रोज आने लगे।इस positive story से बहुत कुछ सिखने को मिलेगा
आज हर रोज लगभग 300 से 400 ऑर्डर की डिलीवरी कर रहे हैं। मां का जो सपना था, वह पूरा हो रहा है। खुशी भी होती है, और 100 लोगों को रोजगार भी दिया है।’
ये डिजाइन सबसे पहले टीम कपड़े की डिजाइनिंग करती है। फिर इसे वेंडर को पहुचाया जाता है। वेंडर गांव की महिलाओं, कारीगरों को डिजाइन के लिए थान में कपड़े भेजते हैं। उसके बाद इसे प्रोडक्शन इकाई में टेलर सिलाई करते हैं।
कीमत कि बात करे तो पहले साल हमने 33 लाख का बिजनेस किया था। 2024 हमने करीब 27 करोड़ का बिजनेस किया है। अगले एक से दो साल में 100 करोड़ के टर्नओवर का प्रोजेक्शन है।’
चिकनकारी आर्ट से करोड़ों का बिजनेस
आइडिया
जब में लंदन से इंडिया वापस आई, तो मां से मझे चिकनकारी आर्ट के बारे में पता चला। लखनऊ में बरसों से इसकी कारीगरी होती है। ये ऑनलाइन उपलब्द नहीं होता था। इसलिए चिकनकारी कुर्ती का बिजनेस शुरू किया।
ट्रेनिंग
लखनऊ के चिकनकारी कारीगरों से मिली। लोकल वेंडर्स से बातचीत की। उनसे डिजाइन के बारे में जाना। डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर के बारे में पहले से जानती थी।
फंड
शुरुआत में लगभग 3 लाख रुपए इन्वेस्ट किए। बिजनेस ग्रो हुआ, तो पापा ने 70 लाख रुपए इन्वेस्ट किए। लखनऊ के वेंडर्स से चिकनकारी कुर्ती बनवाकर सेल करना शुरू किया।
मार्केटिंग
इंस्टाग्राम पर पेज बनाकर प्रोडक्ट बेचना शुरू किया। पोस्ट के जरिए कस्टमर को कारीगरों से मिलवाया। इससे कस्टमर का भरोसा बढ़ा। एक साल बाद 2021 में ‘हाउस ऑफ चिकनकारी’ की वेबसाइट लॉन्च की।इस positive story से बहुत कुछ सिखने को मिलेगा
बिजनेस मॉडल
डिजाइन टीम वेंडर और टेलर को डिजाइन के बारे में बताती है। वेंडर लखनऊ के गांवों में रहने वाली महिलाओं से सम्पर्क करते हैं और चिकनकारी डिजाइन बनवाते हैं। अलग-अलग साइज में कपड़े ऑनलाइन सेल करते हैं। टर्नओवर 27 करोड़ का है। अब तक 100 लोगों की टीम है। जिसे बहुत ख़ुशी मिलती है |इस positive story से बहुत कुछ सिखने को मिलेगा
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